गीत
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पहिले वाला गाँव के, कहाँ कवनो निसान
हर-बैल के बीतल जुग, लउके ना खरिहान
नाधा-जोती का भइल, अब के चिन्ही मेह
जुआठो इतिहास भइल, खतम गाँव में नेह
दंवरी, मेह, खरिहान के ना भइल विहान
नएका खेती मरलक, कलमदान के जान
निहाई धइलक कबाड़ ,बा कुदार बेधार
कहाँ लउकी भाथी अब,लोहार लोहसार
हार्वेस्टर के कटनी, करे पुअरा जिआन
का चबइहें गरु-डांगर, बा किसान हलकान
बाँचल बैल ना खूँटा, शहर गइल चरवाह
गाँव के शब्दकोश से, निकल गइल हरवाह
नदी के पेट में रेत, अब के जाला खेत
रतनधन मिलल बा रेत, महादशा में खेत
कतहीं भईयारी ना, कहाँ बा राग-रंग
अंतर से फाटल गाँव, केहु ना केहु संग
शराबबंदी के दौर, आ नशा बा अथाह
खलीहा पाउच फेंकल, सगरे राहे राह.
.....
कवि - जितेन्द्र कुमार
पता - आरा
मो.नं. 7979011585
बड़ा निक कविता लागल
ReplyDeleteराउर आभार बा.
Deleteबेजोड़
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