Sunday 17 May 2020

आईं जाईं खाईं पीहीं / कवि - जितेंद्र कुमार

ग़ज़ल 





आईं जाईं खाईं पीहीं
फाटल आतम-कापड़ सीहीं

जात-धरम एहीजे तकले
ढाई आखर लीहीं-दीहीं

जिनिगी बा अनमोल रतन-धन
गूढ़ मरम जल्दी चीन्हीं

आइल बा अइसन काल-गरल
नफ़रत छोड़ीं सुख से जीहीं

ढेर ज़हर घोराइल बाटे
शंकर बनके बिख सभ पीहीं.
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कवि - जितेन्द्र कुमार
पता - आरा (बिहार)
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Sunday 10 May 2020

पहिले वाला गांव / कवि - जितेंद्र कुमार

गीत 





पहिले वाला गाँव के, कहाँ कवनो निसान
हर-बैल के बीतल जुग, लउके ना खरिहान

नाधा-जोती का भइल, अब के चिन्ही मेह
जुआठो इतिहास भइल, खतम गाँव में नेह

दंवरी, मेह, खरिहान के ना भइल विहान
नएका खेती मरलक, कलमदान के जान

निहाई धइलक कबाड़ ,बा कुदार बेधार
कहाँ लउकी भाथी अब,लोहार लोहसार

हार्वेस्टर के कटनी, करे पुअरा जिआन
का चबइहें गरु-डांगर, बा किसान हलकान

बाँचल बैल ना खूँटा, शहर गइल चरवाह
गाँव के शब्दकोश से, निकल गइल हरवाह

नदी के पेट में रेत, अब के जाला खेत
रतनधन मिलल बा रेत, महादशा में खेत

कतहीं भईयारी ना, कहाँ बा राग-रंग
अंतर से फाटल गाँव, केहु ना केहु संग

शराबबंदी के दौर, आ नशा बा अथाह
खलीहा पाउच फेंकल, सगरे राहे राह.
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कवि - जितेन्द्र कुमार
पता - आरा
मो.नं. 7979011585